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Tuesday, November 12, 2019

गैसों के उत्सर्जन पर लगाम नहीं लगाई तो 2300 तक समुद्र तल 20 फीट तक बढ़ जाएगा: अध्ययन

वॉशिंगटन. ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने के प्रयासों में तेजी न लाए जाने से वैज्ञानिक चिंतित हैं। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि तापमान बढ़ने के चलते समुद्री तटरेखा जमीन की तरफ सरकती जा रही है। 21वीं सदी के अंत तक समुद्र स्तर 1.1 मीटर तक बढ़ जाएगा। अगर धरती का तापमान बढ़ाने वाले कार्बन उत्सर्जन पर लगाम नहीं लगाई गई, 2300 आते-आते समुद्र तल 20 फीट तक बढ़ जाएगा। औद्योगीकरण से पहले के वातावरण से तुलना करें तो धरती का तापमान 2° सेल्सियस बढ़ चुका है।

द गार्जियन के मुताबिक, शोध में यह भी कहा गया है कि अगर 2015 के पेरिस जलवायु समझौते की शर्तों को तुरंत लागू भी कर दिया जाए, तो इसका पहला नतीजा आते-आते 15 साल लग जाएंगे। शोधकर्ताओं का कहना है कि सभी देशों को 2030 तक सभी देशों को उत्सर्जन कम करने का वादा करना होगा और धरती गर्म करने वाली किसी भी तरह की गैसों के एमिशन पर रोक लगानी होगी। सच्चाई यह है कि बहुत कम देशों ने पेरिस समझौते की शर्तों का पालन किया है।

‘जीवनशैली धरती को बिगाड़ रही’
ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक और अध्ययन के सहलेखक पीटर क्लार्क का कहना है- ‘‘पेरिस समझौते के बाद भी सरकारें धरती बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहीं। धरती का तापमान बढ़ेगा तो समुद्र तल का स्तर बढ़ेगा। अब तो सदियों के लिए समुद्र तल बढ़ने की समस्या आने वाली है। हमें जल्दी ही कठोर फैसले करने होंगे।’’

क्लार्क यह भी कहते हैं कि हम महंगी जीवनशैली की तरफ बढ़ रहे हैं। इसके लिए दुनिया अरबों डॉलर खर्च कर रही है। लेकिन इसका खामियाजा धरती को भुगतना पड़ रहा है। समुद्र तल बढ़ना एक लंबी प्रक्रिया है। हम अपने घरों को ठंडा कर रहे हैं, लेकिन बाहर का तापमान बढ़ा रहे हैं। यही गर्मी समुद्रों का तल बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।

समुद्री जलस्तर केआंकलन के लिए कंप्यूटर मॉडल का इस्तेमाल किया

शोधकर्ताओं ने बढ़ते समुद्री जलस्तर का आंकलन करने के लिए एक कंप्यूटर मॉडल का इस्तेमाल किया। इसकी मदद से 1750 से हो रहे उत्सर्जन का आंकलन किया।यह भी देखा कि यदि सभी देश पेरिस समझौते का पालन करते हैं तो 2015 से 2030 के बीच उत्सर्जन का परिदृश्य क्या होगा? शोधकर्ताओं ने समुद्र जलस्तर में 20 सेमी के आधे जलस्तर में वृद्धि के लिए दुनिया के टॉप पांच देशों अमेरिका, चीन, भारत, रूस और यूरोपीय यूनियन को जिम्मेदार बताया है। पेरिस समझौते का ड्राफ्ट तैयार करने में अमेरिका की मुख्य भूमिका रही थी, लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प ने समझौते से बाहर आने कीघोषणा कर दी थी।


क्लाइमेट एनालिटिक्स और शोध के मुख्य लेखक एलेक्जेंडर नोएल्स ने कहा, “हमारे शोध के परिणाम यह दर्शाते हैं कि हम वर्तमान में क्या कर रहे हैं और साल 2300 में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? 20 सेमी बहुत महत्वपूर्ण है। यह समुद्र का जलस्तर वृद्धि होने के समान है। जैसा कि हमने 20वीं शताब्दी में देखा है। लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि यह लक्ष्य 15 वर्षों के उत्सर्जन से हासिल कर लेंगे।”

समुद्र जलस्तर को बढ़ने से रोकना सभी के लिए चुनौतीपूर्ण होगा
अध्ययन से यह पता चला कि समुद्र जलस्तर को बढ़ने से रोकना सभी देशों के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। विभिन्न देशों को समुद्र के निकट मौजूद इन्फ्रास्ट्रक्चर को बचाने के लिए भारी निवेश करना होगा। विश्वभर के तटीय शहरों में पहले ही कई चुनौतियां हैं। हालिया रिसर्च से पता चला है कि कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी नहीं की जाती हैतो 2050 में हर साल 30 करोड़ लोगों के घर बाढ़ में डूब जाएंगे। पृथ्वी के गर्म होने से ग्लेशियर और दोनों ध्रुवीय प्रदेशों कीबर्फ पिघलेगीऔर इससे समुद्री जलस्तर बढ़ेगा।

यूएन क्लाइमेट साइंस पैनल के अनुसार, अगर उत्सर्जन पर रोक नहीं लगाया तो शताब्दी के अंत तक वैश्विक समुद्री जलस्तर 1.1 मीटर तक पहुंच सकता है। अध्ययन के सह-लेखक पीटर क्लार्क ने बताया कि अगर अंटार्कटिका का पिघलना इसी अनिश्चित दर से जारी रहता है तो विश्व की वास्तविक स्थिति और भी खतरनाक हो सकती है।

2015 का पेरिस जलवायु समझौता
समझौते के मुताबिक ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्री स्तर में बढ़ोतरी होने के लिए जिम्मेदार जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए गरीब और अमीर देशों को कार्रवाई करने की जरूरत है। इसके तहत कार्बन और ग्रीन हाउस गैसों का ज्यादा उत्सर्जन करने वाले देशों को अपने उत्सर्जन पर लगाम लगानी थी। साथ ही विकासशील देशों को शुरुआत से ही कम कार्बन उत्सर्जक बनने लायक आर्थिक सहायता और मूलभूत ढांचा मुहैया कराना था। पेरिस समझौते को दिसंबर 2015 में दुनिया के 195 देशों ने स्वीकार किया था।

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प्रतीकात्मक फोटो।


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